मैं बेटी हूँ।
मैं बेटी इस सृष्टि की हूँ
सबसे अद्भुत रचना।
मैं न होती तो तुम क्या
होते जरा यह कहना!
मेरे ही रूप है ,
माँ पत्नी और बहना।
मैं न होती तो कौन
सजाता तेरा अँगना।
मैं बेटी! माँ के रूप में
आती नहीं यहाँ तो
तुमको धरती पर लेकर
आता यहाँ पर कौन ?
कौन तुम्हें दूध पिलाता,
लोरी सुनाता कौन?
तुम मानों या न मानों
मैं हीं हूँ तेरे घर की माँ अनुपूर्णा।
मैं बेटी ! पत्नी के रूप
आती नही यहाँ तो।
कौन तुम्हारा जीवन सजाता ,
कौन कहता तुम्हें सजना
किसके हाथों में फिर तुम पहनाते
चूड़ी और कंगना?
मैं बेटी बहन के रूप में
आती नहीं यहाँ तो
तेरी कलाई को रेशम के
धागे से सजाता कौन ?
नेक क्या दोगे भईया
यह कहकर तुम्हें चिढ़ाता कौन?
और किसको तुम कह पाते
बहना ,बहना ,बहना।
मैं बेटी ! बेटी रूप आती नहीं यहाँ तो।
तेरे घर को खुशियों से महकाता कौन ।
किसको तुम गुड़िया कहते?
किसको परी बुलाते,
किसको कहते राज दुलारी ।
किसके रून – झून पायल की धून पर
तुम सब ताली बजाते।
~अनामिका