मैं बिटिया तेरी परछाई
माँँ, मुझे न समझो चीज पराई
मैं बोझ नहीं तेरे घर की
मैं बिटिया तेरी परछाई ।
मैं नाजुक सी चिड़िया
रंगीन स्वप्न के पंख लिये
जब घिरी घने अंधेरों में
तुमने रखे चहुँओर दिये ।
मैं झूली तेरी बाहों में
घूमी तेरे संग मेलों में
मैं हँसती, मैं रोती थी
गुड्डे-गुड़ियों के खेलों में
मैं डाँँट से तेरी डरती थी
लाड़ पे तेरे इठलाई ;
मैं बोझ नहीं तेरे घर की
मैं बिटिया तेरी परछाई ।
माँँ, सुनकर बात विदाई की
आँँख मेरी फिर भर आई
इस भाँँति मुझे न जुदा करो
मैं बिटिया तेरी परछाई
मैं बिटिया तेरी परछाई ।।
(मोहिनी तिवारी)