मैं बहारों के गुलशन सजाता रहा, हर अमावस को पूनम बनाता रहा।
मैं बहारों का गुलशन सजाता रहा,
हर अमावस को पूनम बनाता रहा।
वक़्त की चाल टेढ़ी दिखी जब मुझे,
राह कांटों में भी मैं बनाता रहा,
चैन इक पल मुझे ना मिला ना सही,
मुश्किलें दूसरों की मिटाता रहा।
मैं बहारों के गुलशन सजाता रहा
हर अमावस को पूनम बनाता रहा।
दर्द अपनों के खलते रहे उम्र भर,
जख़्म अपनों के छलते रहे उम्र भर,
पीर अन्तस में दब कर कराहती रही,
वेदना सह सतत मुस्कुराता रहा
मैं बहारों के गुलशन सजाता रहा ,
हर अमावस को पूनम बनाता रहा ।
क्यों भरोसा मुझे उनके वादों पे था,
झूठा वादा तो उनके इरादों में था
टूटे वादों इरादों से खा चोट मैं,
नीड़ मजबूत दिल का बनाता रहा
मैं बहारों के गुलशन सजाता रहा
हर अमावस को पूनम बनाता रहा।
अनुराग दीक्षित