— मैं बहला नही सकता —
मैं बहला दूं किसी को
यह गवारा नही है मुझे
क्यूंकि सच जो कहना है
वो सच जो सब के लिए !!
लिखने का मजा भी
तभी तो आने लगता है
जब पढने वाले को
सारा सच लगने लगे !!
आज बहला लो किसी को
कल वो बेकारा लगने लगे
क्यूं न दो तोहफा सच के गुलदस्ते का
जो सब के दिलों को महकाने लगे !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ