मैं बसंत
मैं बसंत
मैं बसंत
कठिन वक्त की ठोकर हो
फिर भी आ जाता
कर्तव्य बोध से
हर द्वारे दस्तक दे esता हूँ
मैं ऋतुराज बसंत
जब यौवन की उद्दाम लहर
रचे प्रेम की सरगम
वेणी में गुंथे हुए हार से
करता खिलवाड़ प्रियतम
आनंद उल्लास के उपवन में
iबासंती बयार का झोंका बन
हर द्वारे दस्तक देता हूँ
मैं ऋतुराज बसंत
काल कवलित
हुए प्रियजन
कैसे उनके द्वारे जाऊँ
उनके दग्ध ह्रदय पर
कैसे शीतल लेप करूँ
कर्तव्य बोध से फिर भी
हर द्वारे दस्तक देता हूँ
मैं ऋतुराज बसंत
अधखुले द्वार से
झांक रहा हूँ
शहादत के पल
उजड़ी बिंदिया
बिखरे काजल की दुखधार
कैसे धीरज उन्हें बधाऊँ
सोंच सोंच कर फिर भी जाता हूँ
हर द्वारे दस्तक देता हू्ँ
मैं ऋतुराज बसंत
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित