मैं बनारस को देखना नही ,जीना चाहता हूँ
मैं देखना नही ,जीना चाहता हूं , बनारस में रह कर बनारस को जीना चाहता हूँ ,
किमाम के बनारसी पान खाकर , मैं पतली कमरिया को ताड़ना चाहता हूँ , मैं गंगा के किनारे बैठकर ,पूरा बनारस देखना चाहता हूँ ,
यू महबूब के बाहों में सर रख कर , मैं गंगा की आरती देखना चाहता हूँ , यू मस्त बहते बनारसी पवन के बयार से ,मैं गंगा को नापना चाहता हूँ , मैं बनारस में रह कर ,बनारस को जीना चाहता हूँ ।
यू मस्त बहते बनारसी पवन के बयार से ,मैं गंगा की आरती देखना चाहता हूँ ।
यू अपने नग्न आखों के किताबो से मैं बनारस को पढ़ना चाहता हूँ , मैं देखना नही बनारस को जीना चाहता हूं ,
यू अपने महबूब के साथ बनारस के चौराहों पर गोलगप्पे खाना चाहता हूँ ,मैं काशी विश्वनाथ के दर्शन करना चाहता हूँ ।मैं बनारस को देखना नही ,जीना चाहता हूँ ।
आहिस्ते आहिस्ते मैं उसमे खोना चाहता हूं ,मैं मणिकर्णिका मशान के प्रसाद को ग्रहण कर खुद को आत्मसात करना चाहता हूँ , मैं बनारस में रह कर बम बम बोले का जाप करना चाहता हूँ , मैं केवल जीना चाहता हूं , मैं बनारस को देखना नही जीना चाहता हूं ।