मैं प्यार में अक्सर
मैं प्यार में उसके अक्सर सभी कुछ भूल जाती हूं
सफ़र काटों भरा भी मुस्कुरा कर नाप लेती हूं
बाहर से खामोश , भीतर उसी को गुन गुनाती हूं
मैं प्यार में उसके अक्सर सभी कुछ भूल जाती हूं
मुझे वो ज़ख्म दे कर , ख़ुद तासीरे नमक सा हो गया
मैं अपने जख्मों पर फिर भी उसी को मरहम सा लगाती हूं
मैं प्यार में उसके अक्सर सभी कुछ भूल जाती हूं
रहूं मैं चाहे फकत भरी भीड़ का हिस्सा
वो ना हो तो ख़ुद को तन्हा ही पाती हूं
मैं प्यार में उसके अक्सर सभी कुछ भूल जाती हूं
तूफ़ान सा आया , तिनके सा बिखेर कर मुझको चल दिया पगला
मैं भटकती हुई भी उसी बवंडर में ठिकाना चाहती हूं
मैं प्यार में उसके अक्सर सभी कुछ भूल जाती हूं
प्रज्ञा गोयल ©®