” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ “
मैं पुष्प बनना चाहता हूँ,
मैं प्रकृति के रंगों में रंगना चाहता हूँ ,
सौन्दर्य का प्रतीक बनकर मैं अपनी सुन्दरता बिखेरना चाहता हूँ ,
काँटों के बीच रहकर भी मैं खिलना चाहता हूँ ,
जी हाँ , ” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ ” ।
मैं प्रेमी युगल की पहली मुलाकात का हिस्सा बनना चाहता हूँ ,
मैं सुहागन के केशों में लिपटा हुआ गजरा बनकर,
उसकी सुन्दरता बढ़ाना चाहता हूँ ।
मांगलिक सुअवसरों पर मैं अपनी उपस्तिथि देना चाहता हूँ,
जी हाँ , ” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ ” ।
मूर्तियों को मस्तक से चरणों तक मैं अलंकृत करना चाहता हूँ ,
हर मन्दिर हर दरगाह में समर्पण होना चाहता हूँ,
हर मजहब में मैं आस्था का प्रतीक बनना चाहता हूँ ,
मैं नफरत की भावना को प्रेम में बदलना चाहता हूँ
जी हाँ, ” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ ” ।
मैं शिशु के जन्म पर बरसना चाहता हूँ ,
मैं वर-वधु के मिलाप का साक्षी बनना चाहता हूँ ,
अपने आशियाने में भँवरों का मधुर संगीत सुनना चाहता हूँ ,
कुचले जाने से पहले मैं किसी को सम्मानित करना चाहता हूँ ,
जी हाँ , ” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ ।
भाष्कर की किरणों के साथ अपने दिन की शुरुआत करना चाहता हूँ ,
मैं खिलना चाहता हूँ , मैं महकना चाहता हूँ ,
जानता हूँ पुष्प बनकर कुछ दिनों का जीवन होगा मेरा,
लेकिन इन कुछ दिनों में ही मैं सबकी पसंद बनना चाहता हूँ ,
जी हाँ , ” मैं पुष्प बनना चाहता हूँ ।
– अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’ ( अनभिज्ञ )