मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-10
मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-10
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
मैं सींच पसीना उपजाता कि धर्म देश परिवार चले…
तुम संवरो स्वर्ग अप्सरा सी, उर हर्षे मलय वयार चले…
दिन भर खपता, कंपता, तपता, फिर सांझ लिखूं तुम पर कविता…
तुम बलखाती चलती पीछे, मैं बोझ धरे आगे चलता…
अपने जीवन की नेह डोर के शोषण का आरोपित हूँ….
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान