मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-9
मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-9
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
अनुजा माँ की रानी गुड़िया बाबा की पारी दुलारी थी…
मैं बाबा से कूटता पिटता उपमा भी गधा लपाड़ी की…
थी नहीं समझ तब भी समझा कि बहिन हंसे तो भाग्य जगे..
अनुजा मारे क्या खाक लगे यदि मैं मारूं तो पाप लगे…
इक राखी के प्रतिफल में सब कुछ न्योछावर अचरज हूं…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान