मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-6
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
सौतेली माँ की इच्छा हित पितु आज्ञा मैंने ही मांगी…
रघुकुल का गौरव अक्षुण रहे इस हेतु अयोध्या तक त्यागी…
सुग्रीव वधू मर्यादा हित बाली वध मजबूरन था…
निज पत्नी के सम्मान हेतु मारा रावण खरदूषण था…
अग्नि परीक्षा मजबूरी मैं मर्यादा का मकसद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान