मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट_5
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
मैं जन्म अभागा ऐसा की पैदा होते माँ छोड़ गई…
कुछ होगी उसकी की मज़बूरी निर्मम ममता को तोड़ गई…
सौतेली का आत्माभिमान जननी ममता सम प्यारा था…
धन वैभव राज्य संतति सुख सब एक वचन पर बारा था…
इच्छामृत्यु वरद पाकर शरशय्या पड़ा देवव्रत हूँ….
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान