मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ पार्ट -3
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
इंद्रासन मुझसे संरक्षित, आर्यावर्त निज से भी प्यारा..
नारी अनुरक्त नहीं था मै, वचन निमित जीवन हारा..
रघुकुल रीति का अनुगामी, मानव मूल्यों का दर्पण..
राष्ट्र और मर्यादा हित प्रिय पुत्र, राज्य जीवन अर्पण..
नारी सम्मान न धूमिल हो निज देह त्यागता दशरथ हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान