मैं पीड़ा का
मैं पीड़ा का पागल प्रेमी, तुम सुख की युवरानी हो
कथ्य-कथानक अलग-अलग हैं कैसे प्रेम-कहानी हो
मैं पतझड़ का सूखा पत्ता
तुम वसन्त की डाली
मैं पलकों पर रात बिताऊँ
तुम सपनों की लाली
कैसे चहके भोर हमारी कैसे शाम सुहानी हो
कथ्य-कथानक अलग-अलग हैं कैसे प्रेम-कहानी हो
मैं द्वारे पर पीर और
आँसू से रचूं रंगोली
तुम नयनों में मधुशाला
लेकर फिरती हो भोली
मदिर नयन से जैसे छलके मदिरा कोई पुरानी हो
कथ्य-कथानक अलग-अलग हैं कैसे प्रेम-कहानी हो
मेरे मन की टूटी कुटिया
टप-टप टपके पानी
तुम जीवन के ऊंच-नीच
सुख-दुःख से हो अनजानी
तुम ‘असीम’ ऊपर वाले के हाथों गढ़ी निशानी हो
कथ्य-कथानक अलग-अलग हैं कैसे प्रेम-कहानी हो
© शैलेन्द्र ‘असीम’