मैं पानी हूँ
हाँ मैं ही हूँ निर्मल पानी
बिन मेरे न जिंदगानी
हाँ मैं ही हूँ………………।
इस धरा का सार बनकर
प्रकृति का उपहार बनकर
बहता हूँ मैं धार बनकर
वृक्षों का आहार बनकर
सींचा मैंने ही खेतों को, ओढ़ती जो चूनर धानी
हाँ मैं ही हूँ……………..।
नदी नाले और झरना
चट्टानों पर से गुजरना
बाधाओं को सहन करना
बाद वारीश में उतरना
कल-कल करता बहता हूँ मैं, मस्त हो अपनी रवानी
हाँ मैं ही हूँ………….।
जब भी नभ से बूंदे गिरती
आमोद से ये धरा हँसती,
बालपन की मुदित मस्ती
कागज से निर्मित वो कश्ती
बादलों की अतिशबाजी, से होती मेरी अगवानी,
हाँ मैं ही हूँ……………।
न करो बरबाद मुझको
करता हूँ आबाद तुझको
क्यों नही है याद तुझको
क्षय करता अहंवाद खुद को
जल स्त्रोतों को दूषित करना, मनुज तेरी है नादानी।
हाँ मैं ही हूँ…………।
मुझ बिन न जीवन रहेगा
वसुधा पर सूखा पड़ेगा
मानव आपस में लड़ेगा
शहर, बस्ती सब जलेगा
हे मानव! संभल जा नही तो, पड़ेगी कीमत चुकानी।
हाँ मैं ही हूँ…………….।
व्यर्थ मुझको न बहाओ
जल संरक्षण मुहिम चलाओ
जल स्त्रोतों को स्वच्छ बनाओ
जन-जन में अलख जगाओ
भविष्य में संकट न होगा, जब रुक जाएगी मनमानी
हाँ मैं ही हूँ निर्मल पानी।