“मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था” किताबवाले महान जासूस भास्कर
भास्कर मोहनलाल जी, थे जासूस महान
परमाणु मिशन पाक का, गए समय पे जान
जी हाँ, ये दोहा मोहनलाल भास्कर जी पर एकदम सटीक बैठता है। भास्कर जी को जिस मिशन पर भेजा गया था, उसमें मोहनलाल जी को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी जुटानी थी, जिसमें वे कुछ कामयाब भी हुए। बदक़िस्मती रही कि मोहनलाल जी को अमरीक सिंह नामक एक अन्य जासूस ने धोका दे दिया। जो कि एक डबल एजेंट था। हिन्दोस्तान के साथ-साथअमरीक सिंह पाकिस्तान के लिए भी जासूसी करता था। अतः भास्कर जी को पाकिस्तान ने कई सालों तक लाहौर की सबसे खतरनाक कोट लखपत जेल में रखा था।
आपको जानकर हैरानी होगी कि भास्कर जी सन 1971 ई. में बांग्लादेश के फाउंडर शेख मुजीब-उर-रहमान के साथ पाकिस्तान की जेल में भी रहे थे। तब तक पाक की जेल में भास्कर जी को चार बरस हो चुके थे। सन् 1983 ई. में मोहनलाल जी ने एक किताब लिखी थी, “मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था” बेहद चर्चित रही। हिन्दी के बाद इसका अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हुआ। जिससे ये किताब देश-विदेश में अत्यन्त लोकप्रिय हुई। विश्व की अनेक भाषाओँ में इस किताब का अनुवाद हो चुका है। न जाने कितनी पत्र-पत्रिकाओं ने इसे धारावाहिक रूप में छापा। न जाने इस किताब पर समय-समय पर अब तक कितने ही लेख-आलेख लिखे जा चुके है।
भास्कर ने इस किताब को बड़े ही रोचक ढंग से पाठकों के मध्य प्रस्तुत किया है। जिसे एक बार कोई पढ़ना आरम्भ करे तो फिर रुकता नहीं। एक जासूस की जीवन का बाईबल है ये किताब। मोहनलाल जी कहते हैं, “पाकिस्तान में मैं मोहम्मद असलम के नाम से रह रहा था। मैंने सबको अपनी पहचान एक पाकिस्तानी मुस्लिम के रूप में बताई थी और मैं पाकिस्तान के लिए ही जासूसी कर रहा हूँ। मोहन जी को जिस मिशन पर भेजा गया था, उसमें वह कामयाब होते भी दिख रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की ख़ुफ़िया जानकारी भी जुटा ली थी। पर ऐन मौक़े पर उन्हें अमरीक सिंह नामक जासूस ने धोका दे दिया। मक्कार अमरीक सिंह एक डबल एजेंट था जो पाकिस्तान और भारत दोनों ही एजेंसियों के लिए काम कर रहा था।
जब 1947 ई. के बाद भारत का बटवारा हुआ और पाकिस्तान बना तो लाखों हिन्दू-मुसलमानों की बलि इसमें चढ़ी। हिंदुस्तान तो एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया। जहाँ हिन्दू – मुस्लिम एक सामान नागरिक हैं और भाई-भाई की तरह रहते हैं, मगर मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान हिन्दुओं को आज भी खा जाने वाली नज़रों से देखता है। आये दिन हिन्दुओं की बहू-बेटियों को वहां उठा लिया जाता है। उनसे जबरन बलात्कार और निकाह की कोशिशें की जाती हैं। यही हाल पाकिस्तान में क़ैद हिन्दू क़ैदियों का किया जाता है। उनपर बेतहाशा ज़ुल्म ढाये जाते है। तो यह कहना ग़लत नहीं कि मोहन लाल जी पर क्या-क्या सितम न टूटे! अतः इन्हीं ज़ुल्मों-सितमों के मध्य भास्कर जी पर जासूसी के अनेक आरोप तय किये गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसी पीड़ा को भास्कर ने अपनी चर्चित किताब में एक कैदी के तौर पर; कई डिटेंशन सेंटर पर; भोगे गए नर्क की यातनाओं का सजीव चित्रण-वर्णन किया है। उनकी मुलाकात अनेक जेलरों तथा पाकिस्तानी कैदियों से भी हुई। सबको डिटेंशन सेंटर पर बुरी तरह से थर्ड डिग्री वाला टॉर्चर किया जाता था।
जब मोहन जी मियांवाली जेल में थे तो वहीं पर वो शेख मुजीब-उर-रहमान से मिले थे। चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने उन्हें प्रचण्ड बहुमत से जिताया था। उनका पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री बनना तय माना जा रहा था। लेकिन पश्चमी पाकिस्तान की सियासत को ये मंज़ूर नहीं था कि कोई बंगाली पाकिस्तान का वज़ीरे-आज़म बने। बंगालियों पर उर्दू भाषियों के अतिक्रमण ने बांग्लादेशियों को एक नया राष्ट्र बनाने पर मज़बूर कर दिया। भाषा के नाम पर तीन लाख बंगाली मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया। धर्म के नाम पर हिन्दुओं से अलग बने पाकिस्तान के पूर्वी टुकड़े में रहने वाले हमवतन मुसलमानों ने ही बंगाली मुसलमानों को गाजर-मूली की तरह काट डाला। मुजीब-उर-रहमान भी तब भास्कर जी के साथ मियांवाली जेल में ही रखे गये थे।
भास्कर जी के लिए सन् 1971 ई. खुशियाँ लेकर आया। उन्हें जेल से उस समय तब रिहा किया गया, जब भारत-पाक के बीच “शिमला समझौता” साइन हुआ था। इस समझौते के तहत पाकिस्तान के तत्कालीन वज़ीरे-आज़म ज़ुल्फ़िकार भुट्टो ने पाक की जेल में बंद भारतीय कैदियों को रिहा करने पर अपनी रजामंदी ज़ाहिर की। जिन चौवन भारतीयों को पाक की अलग-अलग जेल से रिहा किया गया था, उनमें मोहनलाल जी भी थे। जब मोहनलाल जी हिन्दोस्तान लौटे तो उन्हें पता चला 16 दिसंबर को भारतीय सैनिकों की जीत के फलस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण हुआ था। जिसमें पाकिस्तानी सेना के लगभग 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जय हिन्द। जय भारतभूमि।
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