मैं पथिक
मैं पथिक
चलता रहा
मार्ग में
भटकता रहा
कभी उकताता
थक हार
कभी बैठता
फिर बढ़ता
कितनी बार
खाए भी
निराशाओं के
ठोकर मैंने
संघर्षों के
काँटे चुभौता
पीछे कभी
न मुड़ता
बस केवल
चलता रहा
मैं पथिक
चलता रहा
मैं पथिक
चलता रहा
मार्ग में
भटकता रहा
कभी उकताता
थक हार
कभी बैठता
फिर बढ़ता
कितनी बार
खाए भी
निराशाओं के
ठोकर मैंने
संघर्षों के
काँटे चुभौता
पीछे कभी
न मुड़ता
बस केवल
चलता रहा
मैं पथिक
चलता रहा