*मैं नास्तिक हु और आप *
*किसी ने मुझसे कहा,
कि तुम तो चिढते हो,
सोच छोटी है आपकी,
मैंने स्वीकार किया और जवाब दिया,
*तुनक मिजाज है जो,
हूनर की तस्वीर है वो*
मुझ से क्या बुरा हुआ,
विज्ञान की दहलीज है वो,
नीचा दिखाने का प्रयास तुम्हारा,
ख्याति मुझे दे गया,
तुम तो कल भी खुश न थे,
आज भी कारण तो मालूम नहीं,
जमाने में मुकाबला है
मैंने स्वीकार किया,
मैंनै न लडाई की,
न मैदान छोड़ भागा,
बस खड़ा रहा,
डटा रहा,
यही मेरी जीत,
तुम्हारी हार,
मैं जौन था,
जैसा था,
बस खुशहाल,
.
परिणाम भविष्य की गर्त में,
न जाने क्या हो ?
क्या तुमने बिन सहारे जीवन जिया,
नहीं ?
असल रेकी ज्योतिष,
हम खुद है,
क्या हम जिंदा है,
जीवंत बने रहना चाहते है,
तो ये समस्याएं आएंगी,
तत्पर रहना,
शिकायत मत करना,
यही जीवन है,
चिढना नफरत का उपनाम है,
हाँ मुझे नफरत है उन विधि विधान,
रीति रिवाज परम्पराओं से जो मानवता को बाँटे है,
इन तरीकों से लोग मरते ज्यादा है,
बचते कम है,
जागो जागरण तुम्हारा धर्म है,
मैं नास्तिक हु और तुम,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा)