मैं नारी हूं
“मैं नारी हूं”
पुरुषों के समाज में अबला कहलाने वाली बेचारी हूं,
सब कुछ सहकर चुपचाप आंसू बहाने वाली मैं नारी हूं।
पुरुष को जन्म देने से मरण तक देती हूं साथ पुरुष का,
उस वक्त भी होती जरूरी प्रदर्शन होता जब पौरुष का।
समाज में व्याप्त भेदभाव अनीति को सहना भी है,
न कोई आवाज उठाना और न कुछ कहना भी है।
समय बदलता युग बदलते पर न बदलता हाल,
त्रेता द्वापर से कलियुग आया हाल हुआ बेहाल।
सीता हो या द्रौपति सब हालातों के आगे थे हारे,
पुरुष प्रधान इस समाज में फिरती हैं मारे मारे।
हमारे त्याग और समर्पण का नहीं है जग में कोई मोल,
अत्याचार अन्याय होता हम पर और मिलते कड़वे बोल।
मां बेटी और बहु के रूप में आज भी संघर्ष करती नारियां,
पुरुष प्रधान समाज में कोई नहीं सुनता इनकी सिसकारियां।
अब वक्त आ गया इनके लिए आवाज उठाना होगा,
सामाजिक समानता व अधिकारों का हक दिलाना होगा।।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर, रायपुर छत्तीसगढ़