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26 Jul 2024 · 1 min read

मैं नारी हूं, स्पर्श जानती हूं मैं

मैं नारी हूं, स्पर्श जानती हूं मैं
नज़र कैसी किसकी है,उसे पहचानतीं हूं मैं।

कला कौन सी नहीं मुझमें,
पर विरोधों से दूर लोगों का कहा मानती हूं मैं।

हर कोई मुझे,अपने सा बनाना चाहता है
उन सब के बीच ख़ुद को तलाशती हूं मैं ।

खाक से उठकर नाम आसमां पर लिखा मैंने
फिर भी बंद घरों में अस्तित्वहीन कहलातीं हूं मैं ।

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