मैं नारी हूँ
मैं ममता की शीतल छाँव हूँ,तो सूरज की तपिश भी.
निर्मल अविरल नदी हूँ,तो प्रचन्ड अग्नि भी.
बहन,पत्नी,प्रेमिका और विश्वजननी भी,
पृथ्वी की तरह सहनशील हूँ,तो काली घटा भी.
मत खेलो मेरी इज़ज़्त,आबरु और अस्मिता से,
जीना चाहती हूँ और उंचे आसमान मैं उड़ना भी.
मत कतरो पंख मेरे माँ की ही कोख में,
मत पाटो रिवाजों,लिबासों और दकियानूसी विचारों में,
पूजा-अर्चना और देवी बनना नहीं है मुझे,
जीना है अपने ही बनायी नयी.दुनिया.में.
बच्चे पैदा कर सकती हूँ तो परवरिश भी,
घर सम्भाल सकती हूँ तो आसमान में जहाज भी,
पूजा-अर्चना नहीं मुझे बराबरी का हक़ चाहिये,
लहरा सकती हूँ कामयाबी का परचम भी.
पर ये क्या जिसे प्यार से दुनिया में लायी,
बेआबरु कर उसी ने बाजार में कीमत लगायी,
धैर्य का इम्तहान और ये सौदा कब तक,
सीता,सावित्री तो कभी द्रौपदी बन आयी.
मुझे अविरल.बहना और उड़ना भी है,
मैं ही दुनिया,मैं हीजननी और मैं ही नारी हूँ.