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10 May 2024 · 1 min read

मैं नदी

८)
” मैं नदी ”

मैं नदी
तुम हो खिवैया
मैं मुरली
तुम बंसी बजैया ।।

मैं नदी
सुख-दुख का आधार
मैं न रूकती
बहती सतत् मेरी धार ।।

मैं नदी
निर्मल तन-मन था मेरा
रे सनकी मानव
डाला प्रदूषण ने डेरा ।।

मैं नदी
करती हूँ ये कामना
सच्चा मानव बन
हाथ मेरा तुम थामना।।

मैं नदी
फिर बनूँ पतित पावन
गंगा हो या यमुना
सभी बने मनभावन ।।

मैं नदी
करती करबद्ध ये पुकार
ओ बावले , समझ
नहीं तो होगा हाहाकार।।

स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता इंदौर

1 Like · 58 Views
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