मैं नदिया
हूँ मैं हिम शिखर की तनया
अब्धि की हूँ मैं प्रियतमा ।
डगर डगर है नीर प्रवाहित
कहीं न ठहरा और न थमा ।
मैं तरंगिणी उज्जवल निर्मल
कल-कल सदा मेरा है निनाद।
युगों-युगों से ही मेरे तटों पर
बस्ती नगर होते रहे आबाद।
कहीं कहलाती पावन गंगा
और कहीं मैं नर्मदा यमुना।
कल्मष निवारिणी हूँ सदा
हर प्राणी को मानूं अपना।
नदिया सरिता या कहो तटिनी
तुम चाहो जिस नाम पुकारो।
पावन पुण्य शुचि मेरा सलिल
कर स्पर्श निज पापों को तारो।
पावनतम यह देश है भारत
है नदियों से स्नेहिल नाता।
यह वो महानतम देश जहाँ
नदियाँ कहलाती हैं माता।
रंजना माथुर
अजमेर(राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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