मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में वहता हूं
जीवन हूं मैं सब जीवो का
प्राण दान देता हूं
उपजाता हूं अन्नधान्य
वृक्षों को जीवन देता हूं
मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में वहता हूं
चलते रहना ही धर्म है मेरा
निरंतर गतिशील रहता हूं
गंतव्य पर जाकर
स्वामी के जल में जा मिलता हूं
उड़ जाता हूं बाष्प रूप में
और बादल बन जाता हूं
जीव जंतु कि त्रिशा मिटाने
धरती पर आ जाता हूं
मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में वहता हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी