मैं धारा बरसाती
******मैं धारा टकराती**********
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तुम मेरे दीपक हो,मैं दीये की बाती
तुम तो अंतर्भावी हो,मैं तो हूँ जज्बाती
दरिया से दिल अंदर तो बहुत गहराई है
तुम मेरे साहिल हो , मैं धारा टकराती
जिन्दगी के मोड़ पर तूफान में घिर गए
तुम तूफानी झौंका , मैं मौसम बरसाती
जमाने की चकाचौंध में तुम तो बह गए
तुम शहरी जन वासी, मैं तो हूँ देहाती
भावों का घना कोहरा मन अंदर जम गया
तुम मन की कह निकले,मैं रह गई शर्माती
तेरी सूनी राहों में , चिराग जला दिए
तुम बुझे दीपक, मैं ज्योति जलूं दिन राती
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)