मैं धरती पुत्र किसान हूं !
मैं धरती पुत्र किसान हूं,
वसुधा की पीड़ित संतान हूंं।
धरती का सीना चीरकर,
बीज सृजन का में बोता हूं।
फसलों को लहु से सीचकर,
अन्न सबके लिए सजोता हूं।
कहने को तो मैं अन्नदाता हूं,
भोजन देने वाला विधाता हूं।
मेरी हालत हुई बहुत खराब है,
रूठी किस्मत और टूटे ख्वाब हैं।
बच्चे हमारे बेबस और लाचार,
ना शिक्षा पूरी, ना कोई व्यापार।
बिटिया के ब्याह में सब बिक गया,
समय दुख थोड़ा और लिख गया।
प्रकृति का कोप भी हमे सहना है,
कभी सूखा,कभी बाढ़ में बहना है।
वोले की मार से फसल मार जाता है,
गलत नीतियों से सब गल जाता है।
कर्ज हमपर इतना हो गया,
जीने से मरना सरल हो गया।
हमारे नाम पर होती राजनीति,
बनती नहीं हित में कोई नीति।
हमारे नाम पर बस चुनाव होते,
सबके अपने अपने दाव होते।
चुनाव उपरांत कोई नहीं पूछता,
खेतो में किसान वैसे ही जूझता।
सरकारों से बस इतनी इल्तज़ा है,
जिंदगी हमारी अब तो हुई सजा है।
हमारे लिए भी अब कुछ काम करो,
थोड़ी राशि किसानों के भी नाम करो।
नीतियों में भी कुछ परिवर्तन हो,
नहीं केवल चुनावी प्रदर्शन हो।
जीवन में हमारे ऐसा सुधार हो,
हम पर किसी का नहीं उधार हो।
हमारे बच्चे भी फूले फले नहाएं,
खुशियां हमारे जीवन में भी आएं।
अब हम भी दो रोटी पेट भर खाएं,
चैन से थोड़ा तो हम भी सो पाएं।
मैं धरती पुत्र किसान हूं,
वसुधा की पीड़ित संतान हूं।