“मैं दिल्लगी करता हूँ”
तेरे इश्क़ में हुआ मदहोश बहुत, मैं दिल्लगी करता हूँ
मुझें तुझपर यकीं है मेरे सनम मैं तुझपे यकीं करता हूँ
होता हूँ तन्हा आशियाने में जब कभी कभी वीराने में
लेता हूँ तेरा ही नाम बेख़ुदी में हर शाम रंगीं करता हूँ
मुझपे असर है जाने कैसा, ना होश है ना ख़बर अपनी
ये मीठा ज़हर मैं पी पीकर दिलनशीं दिलनशीं करता हूँ
ग़म करना मैंने छोड़ दिया ,मैं भूल गया सब जख्मों को
हो जाऊं बेशक़ बदनाम अब , थोड़ी सी ख़ुशी करता हूँ
तू है कोई रेशम का धागा मैं जैसे कोई उड़ता पतंग हूँ
तेरे संग संग हरदम आसमां में होके ज़मीं ज़मीं करता हूँ
___अजय “अग्यार