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10 May 2019 · 1 min read

मैं दिया तू दिए कि बाती पूर्दिल !

घर की देहरी पे,
एक दिया जलता है
उजाला उचक के झांकता,
भीतर तक बढ़ता चलता है.
लपक-लपक के बाती
हस-हस के कहे अंधेरे से
मेरे जलने तक अंधेरा,
बता तू कहां ठहरता है…?
एक दिया जो रात भर
देहरी पे सब के जलता है
घुप्प अंधेरे के सीने पे भी
उजाला बन मचलता है…
वो दिया मैं हूँ सखे जो जल कर ही
जग को उजाले से भरता है…
/
मैं दिया तू दिए कि बाती पूर्दिल
तू मुझ में ही हरदम पलता रहता है
अकेला होकर तू कहां कभी जलता है.
भोर तल्क़ तू जले है पुर्दिल,
फिर दिल को क्यूँ मले है पुर्दिल
मैं चुपचाप बस, सब सहती हूँ,
कभी न तुझ से कुछ भी कहती हूँ.
उजाला से तू छल-छल छलके
चिलका के शोर तलक जल-जल के.
मेरा तुझ संग चलना ही तेरा जलना है
जिव्हा पे तेरे उजाला है, तले में मेरे अंधेरा.
अंधेरा पूछ रहा जाने कब से मुझ से
बता कौन है तू… जिस के संग-संग
अंधेरा और उजाला चलता है !
***
10-05-2019
…पुर्दिल …

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 361 Views
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