मैं तो महज आवाज हूँ
मैं तो महज आवाज हूँ
कभी अपनों की
कभी सपनें की
मैं तो महज आवाज हूँ
दूर तक मैं गुंजती
ठोर कोई मैं ढूंढती
मैं तो महज आवाज हूँ
फड़फड़ाते पात की
और सूनी रात की
मैं तो महज आवाज हूँ
गूंज मैं हवाओं की
महक मैं फिजाओं की
मैं तो महज आवाज हूँ
गरीब की दबी हुई
V9द की बुझी हुई
मैं तो महज आवाज हूँ