मैं तो तेरा ज्योतिर्पुंज हूँ
गीत
मैं तो तेरा ज्योतिर्पुंज हूँ
तुझमें समाने आई हूँ
डूबके तुझमें बह जाऊँ मैं
आज नहाने आई हूँ
दुनियाँ का हर बन्धन तोड़ा
लोभ क्रोध मोह सब है छोड़ा
रग रग तेरी जान गयी हूँ
तुझको मैं पहचान गयी हूँ
सदियों से तूने तड़पाया
अब आकर ये ज्ञान सिखाया
कैसे तुझको भूल गयी मैं
जग व्यसनों में डूब गयी मैं
आज कृपा जब पाई तेरी
समझ सभी तब पाई हूँ
मैं तो———–।
जब से मैंने होश संभाला
मात पिता बन तुमने पाला
मुझको अच्छा सबक सिखाया
प्रेम का सच्चा पाठ पढ़ाया
जब थोड़ी सी बढने लागी
जग धंधों में फ़सने लागी
तूने अपना हाथ छुड़ाया
ठोकर खाकर चैन गँवाया
तबसे अँगारों पर हूँ बैठी
ठीक से सो ना पाई हूँ
मैं तो ———-।
थक कर जब मैं हार गयी थी
अपना सबकुछ बार गयी थी
आकर हुयी समर्पित तुझको
थाम लिया आ तूने मुझको
माटी से सोना कर डाला
अमृत से भरदी मधुशाला
मिलकर तुझसे लिपट गयी मैं
दामन में आ सिमट गयी मैं
खौफ़ नहीं मरने का ‘माही’
आज मिलन को आई हूँ
मैं तो ——–।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ (गुरुग्राम) हरियाणा