!!! मैं तो कुछ भी नहीं !!!
क्यों कहते हो तुम कुछ भी नहीं !
तुम्हारे आँच से यहाँ
किसी की ज़िन्दगी रोशन हैं,
तुम्हारे तसब्बुर से यहाँ
कुछ कदमों में जान हैं,
तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे से ही
पाएमाल हुए कई दिलों में
धड़कने जगी हैं,
तुम हो तो हौंसले उरोज़ पर हैं,
किसी के लिए तुम इक ज़िन्दा मिसाल हो
फिर…
क्यों कहते हो कि तुम कुछ नहीं !!
तो क्या हुआ गर दुनिया को
तुम्हारे अहमियत का पता नहीं,
लाख सितारो से बेहतर तो
यह एक सूरज हैं
जो आफताब-ओ-तपिश देता हैं,
हज़ारो को मकीँ किए हुए
इक सहारा दरख़्त होता हैं,
स्याह शब में इक अकेले
माहताब नूर बिखेरे हैं,
फिर…
क्यों कहते हो कि तुम कुछ भी नहीं !!
क्यो कहते हो कि तुम कुछ भी नहीं !!!