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21 Feb 2021 · 1 min read

मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा

मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा

मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा

तू कसी और की जागीर थी , खबर नहीं मुझको

तेरे एहसास से रोशन है जिन्दगी मेरी

तू किसी और की अमानत थी , खबर नहीं मुझको

भरे शहर लुट रही अस्मत

ऐसे भी चरित्र बसर कर रहे , खबर नहीं मुझको

मुझे तेरी बेबसी का ख्याल था जानम

हमने बुलाया भी नहीं , आप आये भी नहीं

जिन्दगी सितारों की तरह बदलती है रंग अपना

कभी पास तो कभी दूर होने का गुमां देती है

खिलाओ फूल , कभी खुशबू फैलाकर देखो

किसी बदनसीब का नसीब बनाकर देखो

Language: Hindi
Tag: शेर
2 Likes · 1 Comment · 229 Views
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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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