“मैं तुम्हारी हूँ”
कभी मेरी खातिर
कितने स्वप्न पलकों
की गलियों में
संजोए थे तुमने
वो स्वर्णिम एहसास
कि..तुम मेरे हो,और
मैं तुम्हारी,कितने ही
सुखद स्वप्नों की
जीती जागती तस्वीर
बन गए थे….हम,तुम
वो कनखियों से पल पल
मुझे निहारना
और आँख मिलते ही
शर्म से लबरेज रूखसारों का
रक्तिम हो जाना….
उफ्फ,याद है प्रिय वो पल
वो बारिश की रिमझिम में.. .
तुम्हारे सुकून भरे स्पर्शों की गहराई
आज भी मेरे हृदय को
गुदगुदा जाती है।
हाँ उन अमुल्य पलों की
अविस्मरणीय अनुभूती स्वरूप
आज तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा
और सदैव संग है हमारा ये अटूट रिश्ता।
निधि भार्गव।