मैं तुमको खत लिखूं..
मैं तुम्हें खत लिखूं,
तुम्हें प्रिये लिखूं या तुम्हारा नाम लिखूं..
अभी हमारी पहचान कुछ समय भर की है,
अभी हमारी जानकारी नाम भर की है..
तुम्हीं बताओ तुम्हें क्या लिखूँ.?
गली से गुजरती थी,
हर रोज किनारे से तुम्हें देखता था,
पहले हैलमेट पहनकर देखता था,
अब नजरें मिलाकर मुस्कुराता हूँ,
पहले छिपता था,
अब कुछ दूरी साथ चलता हूँ..!
ना तुम मुझसे घबराई,
ना कभी साथ चलने से मना किया,
नाम भी पूछा तो,
मुस्कुराकर बता दिया,
अब तुम ही बताओ,
इसे मैं क्या कहूँ..?
पहले मैं बेख़ौफ़ था,
अब तुम्हें देखकर डरने लगा हूँ,
पहले मैं मस्त था,
अब तुम्हारी यादों में घुलने लगा हूँ,
सोचता तो बहुत कुछ हूँ,
मगर तुम्हें देखकर जुवान जकड़ जाती है,
पहले बहुत रास्ते थे,
अब तुम्हारे ही रास्तों पर नजर ठहर जाती है..!
पहले बस पलभर की सोचता था,
अब तुम्हारे साथ,
जीवन बिताने की सोचने लगा हूँ,
पहले दिन में ही बेचैन था,
अब दिन रात बेचैन होने लगा हूँ.
ये तुम्हारा असर,
पतझड़ से बसंत बनकर मुझे ढ़कने लगा है,
अब आईने में भी,
मेरा चेहरा तुम्हारे चहरे में बदलने लगा है..
तुम्हीं बताओ,
मैं इसे क्या कहूँ..???
प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली-07