मैं तुझे खुदा कर दूं।
समझाया बहुत है मैंने अपने दिल को,
तेरी यादों को कैसे खुद से जुदा कर दूं।
हर लम्हे में मेरे तू शामिल है कुछ यूं,
मेरे वश में हो तो मैं तुझे खुदा कर दूं ।
चाहे तो ले ले तु इंतहान मेरे इश्क की,
तू कहे तो हर शाम को मैं सहर कर दूं।
रोके से कहां रुकती है लहर इश्क की,
तू दे साथ तो मैं फर्श को भी अर्श कर दूं।
सीने में तूफां और आंखों में दरिया है,
मैं अपने पर आऊं तो झील को समंदर कर दूं।
जमाने को छोड़ जो तेरे पहलू में आई हूं,
तू कहे तो मैं जमाने का रुख मोड़ दूं।
वैसे तो अब तक कोई किस्सा नहीं हमारा,
तू कहे तो मैं इस पर मैं पूरी ग्रंथ लिख दूं।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड उड़ीसा