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24 Feb 2018 · 4 min read

मैं डाॅक्टर हूं

व्यंग्य
राजीव मणि
मैं डाॅक्टर हूं, होमियोपैथिक डाॅक्टर। अगर अच्छी तरह से देखकर दवा दे दूं तो समझिए आप दो खुराक में ही ठीक हो गए। और आपसे मन न मिला, तो मीठे-मीठे लेमनचुस के चालीस-पचास रुपए कहीं नहीं गये।
मैं खानदानी हूं। मेरे बाप-दादा ने भी यही किया है। उन्हीं को दवा बनाते देखते-देखते मैं भी सीख गया। कुछ लोग तो मुझे प्यार से ‘खानदानी डाॅक्टर’ भी कहते हैं।
मेरे शहर में और भी कई डाॅक्टर हैं। पता नहीं कहां-कहां से सब पढ़ कर आए हैं। अंग्रेजी खूब बोलते हैं, पर चलती नहीं। उन्हें क्या मालूम कि हिन्दी बोलकर ही जो किया जा सकता है, वह अंग्रेजी बोलकर नहीं।
नसीब का अपना-अपना खेल है सब। मैं मीठी गोली में पानी मिलाकर भी खिला दूं तो सिर का चक्कर दूर हो जाए। बहुत नाम था मेरे बाप-दादा का। और आज उनके ना रहने पर भी लोग दूर-दूर से मेरे पास आते हैं। बहुत बड़ा दिल है मेरा। मैं किसी को दवा देने में भेदभाव नहीं करता। आठ कुत्तों और चार गायों को भी मैंने अपनी दवा से बचाया है। इसलिए लोग अब अपने-अपने जानवरों को भी दिखाने मेरे पास लाने लगे हैं।
किस-किस को ना कहूं मैं। चार दिन हुये। मेरे पास दस्त की होमियोपैथ की दवा नहीं थी। मुहल्ले का ही एक मित्र आ धमका। कहने लगा – यार, कुछ भी दे दो, तुम्हारे हाथ का पानी भी अमृत बन जाता है। अब आप ही बताएं, मैं क्या करता। मजबूरी थी, अतः मैंने ऐलोपैथिक दवा की एक-एक टिकिया, जो बुरककर पहले से ही रखी थी, दे दी। शाम में ही वह मित्र आकर काफी तारीफ कर गया।
कैसे मैं खुश ना होऊं। पचास पैसे की टिकिया खिलाकर चालीस-पचास का हरा-हरा नोट लेना किसे अच्छा नहीं लगेगा। और तो और, मैं सूई भी लगा लेता हूं। सच कहूं तो सूई मेरा ‘रामबाण’ है। एक सूई में दो मरीजों को निपटाना कोई मुझसे सीखे।
शहर के दूसरे डाॅक्टर तो मेरी तरक्की देख जलने लगे हैं। परन्तु, मैं जानता हूं, अपनी मुसीबत में दूसरों का सुख नहीं देखा जाता। जो समझदार हैं, मुझे देखकर हंसकर ही संतोष कर लेते हैं। और जो बाहर से पढ़कर आये हैं, वे मुंह मोड़ लेते हैं।
लेकिन, किसी के हंसने या मुंह मोड़ लेने से क्या होने वाला है। मैं अपने को भाग्यवान समझता हूं, जो अच्छे-अच्छे घर की युवतियां भी मेरे सामने आकर हाथ बढ़ा देती हैं। मैं काफी प्यार से उनके हाथ को थामे रहता हूं। जबतक ‘नाड़ी की गति’ अच्छी तरह न देख लूं, दवा सही नहीं बैठती। कइयों की बीमारी तो मैं चैबीस घंटे में ही ठीक कर चुका हूं। और अगर पैसे की कड़की रही, तो महीनों लग जाते हैं।
पहले मैं सिर्फ सुबह-शाम ही मरीजों को देखा करता था। परन्तु, अब ‘सीजन’ आ गया है, सो दिनभर देखता हूं। वैसे भी घर आई लक्ष्मी को जाने देना अच्छी बात नहीं।
दिनभर बैठे-बैठे भी मैं बोर नहीं होता। मरीजों के साथ बैठकर गप्पे करने का भी एक अलग मजा है। कहा भी गया है कि आधी बीमारी तो प्यार के दो-चार शब्दों से ही ठीक हो जाती है। आजकल के बहुत ही कम डाॅक्टर यह नुक्शा जानते हैं। वैसे भी सभी विद्या सबको नहीं आती ! यह सब खानदानी डाॅक्टर ही समझता है।
डाॅक्टर होना कोई खेल नहीं। कई औरतें तो ऐसी भी आती हैं, जिन्हें मैं दवा खिलाकर ‘इफेक्ट’ देखने के बहाने घंटों बैठाए रहता हूं। आखिर दिनभर मरीजों को देखते रहने से कोई बोर नहीं हो जाएगा ? मनोरंजन भी होना चाहिए या नहीं। किसे मनोरंजन अच्छा नहीं लगता। विदेशों में तो अब मनोरंजन से इलाज भी होने लगा है। तरह-तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं।
आजकल के भागदौड़ के जीवन में जिस मानसिक तनाव से लोग गुजर रहे हैं, वो मैं अच्छी तरह जानता हूं। डाॅक्टर हूं ना। ऐसे में दवा के साथ-साथ मनोरंजन काफी जल्दी अपना प्रभाव दिखाता है। अपने जीवन में इस तरह के कई प्रयोग मैं कर चुका हूं। कुछ समझदार औरतें मेरी तकनीक समझ गई हैं और तो और अब मैं घर पर भी उन्हें देखने जाने लगा हूं। खासकर जब उनके पति घर पर नहीं होते, तभी उन्हें दौड़ा पड़ता रहता है। आखिर घर के ढेर कामों का बोझ उनके सिर पर रहता है ना !
एक तरह से कहें तो मैं कई परिवारों में ‘फैमिली डाॅक्टर’ के रूप में जाना जाता हूं। कई औरतों को जिन्हें बच्चा नहीं हो रहा था, मेरे इलाज से पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई है। मेरे हाथ काफी साफ हैं। आखिर ‘सुखैन वैद्य’ और ‘दुखैन डाॅक्टर’ क्या जाने इस तरह का इलाज। खानदानी डाॅक्टर ही मरीज के रोग का ‘नेचर’ समझे।
कभी-कभी सोंच में पड़ जाता हूं, कबतक मैं इन दुखियों का इलाज करता रहूंगा। एकदिन बुड्ढ़ा भी तो हो जाऊंगा। सो सोंचता हूं, अभी से ही अपने बेटे को भी अपने साथ बैठाया करूं। मेरे बाद मेरे इतने चहेतों और उनकी संतानों को ‘फैमिली डाॅक्टर’ की जरूरत तो पड़ेगी ही। वैसे भी किसी पिता की यही आखिरी इच्छा होती है कि उसका बेटा उससे भी आगे निकले।
….. तो मैंने विचार लिया है। वादा करता हूं, अपने बाद भी मैं आपके लिए एक डाॅक्टर छोड़ जाऊंगा, आपकी सेवा में। चलते-चलते एक अच्छी खबर दिये जाता हूं। मैंने अब स्पर्श चिकित्सा भी शुरू कर दिया है। सुनता हूं, विदेशों में महिलाओं को इससे काफी फायदा हुआ है। अब यहां भी महिलाओं को यह सुविधा मिल सकेगी। फौरन ही आराम का दावा है। और हां, यह सुविधा आपके घर पर भी मिल सकती है, वह भी काफी कम खर्च पर। तो यह अपने दोस्तों को भी बताइयेगा। अब चलता हूं, दुकान बढ़ाने का समय हो गया है। अपना ख्याल अवश्य रखिएगा। जान है तो जहान है।


Language: Hindi
Tag: लेख
232 Views
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