मैं टीम इंडिया – क्यों एक अभिशापित कर्ण हूँ मैं!
क्या मैं भी एक अभिशापित कर्ण ही हूँ!
क्या श्रापित हूँ मैं भी उसकी ही तरह?
मैं भी उसकी ही भाँति उच्च योद्धा जाना जाऊँ
मैं भी किसी अर्जुन से कहाँ कम आँका जाऊँ!
मैंने हर योद्धा को रण में कई बार परास्त किया है
मगर भाग्य का दोष कहूँ या विधि का विधान इसे
वक्त के क्रूर हाथों ने देखो मेरा क्या हश्र किया है!
महाभारत रूपी महासंग्राम वर्ल्ड कप की रणभूमि में
जब जब मैं अपनी विजय पताका फैहराने आता हूँ
उस अश्वमेध यज्ञ में मैं कई शौर्य गाथाएँ लिखकर भी
हर बार अंतिम क्षणों में बस वीरगति पा जाता हूँ
विजय नाद बजाने से पहले मैं पराजित हो जाता हूँ!
क्यों उस पराक्रमी योद्धा कर्ण की भाँति ही
महा रण के महत्वपूर्ण अंतिम चरण में खड़ा मैं
स्वयं को असहाय पाता हूँ जीता संग्राम मैं हार जाता हूँ!
रणभूमि में जिनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है
मेरे अभेद्य अलौकिक कहलाये जाने वाले सैनिक
और सभी अस्तर शस्त्र भी तो कोई काम नहीं आते हैं
सब नीतियाँ वहीं की वहीं बस धरी ही रह जाती हैं
मेरा रण कौशल मुख्य क्षणों में शिथिल पड़ जाता है
तरकश से निकला कोई भी बाण लक्ष्य भेद नहीं पाता है!
विजय पथ पर रथ का पहिया गड्ढे में धँस जाता है
और मैं असहाय खड़ा एक मूक दर्शक बन जाता हूँ
बस अंतिम क्षणों में मैं पराजय द्वार पहुँच जाता हूँ!
हर बार ही चाहे हो वो विश्व एक दिवसीय चैंपियनशिप
या फिर पाँच दिवसीय टेस्ट मैच विश्व प्रतियोगिता
कभी न्यूज़ीलैंड तो कभी आस्ट्रेलिया सा सामने आता है
वो कोई अर्जुन सा बन मुझे बस धराशायी कर जाता है!
अंतर्द्वंद में हूँ घिरा असमंजस में पड़ा हूँ मैं सोच रहा
हे नीलवर्ण कृष्ण क्यों रूठे हो अबतक भी मुझसे
अर्जुनों को छोड़ कभी मेरे पक्ष से भी क्यों नहीं लड़ते
सारथी बन मेरा हाथ भी थाम लो हे गिरधर
मेरी भी तो पीड़ाएँ हरो प्रभु अपना आशीष देकर!
देखो मैंने भी तो कब से नीलांबर वस्त्र धारण किये हैं
अब तो मैंने भगवा टोपी टी-शर्ट निकर भी पहन लिये हैं
तुम तो स्पष्ट समझते ही हो इसके क्या सही मायने हैं
बताओ प्रभु मैंने अभी कितने और कटाक्ष उपहास सहने हैं!
कब तक मेरे अविचलित प्रयास निरर्थक होते रह जाएँगे
कब पराजय के नागपाश से प्रभु मेरे भाग्य मुक्ति पायेंगे
कर्ण समान श्रापित मुझको श्राप से कब मुक्ति दिलाओगे
कब मुझे अपना आशीर्वाद देकर हर श्राप मेरा हर जाओगे
कब सारथी बन आप मेरी नौका भी हे प्रभु पार लगाओगे!
आशाओं की डोरी थामे अडिग खड़ा हूँ मैं जाने कब से
घायल अवस्था में भी चिरकाल से मैं भिड़ रहा हूँ सबसे
जो लाज रखो मेरी योग्यता की तभी वो अप्रतिम बनेगी
प्रभु जो आशीर्वाद मिले तुम्हारा तो ही मेरी धाक जमेगी!