मैं ज्वालामुखी सी हूँ…
ज्वालामुखी की परिभाषा हम स्कूल में पढ़ते हैं
जानते हैं ये बस पत्थरों से फूटते हैं ,
दुनिया भ्रमण पर उसको देखने जाती है
इंसान के अंदर का ज्वालामुखी नही देख पाती है ,
मैं भी ज्वालामुखी की तरह अंदर से खौलती हूँ
हर एक – एक शब्द को मन में समेटती हूँ ,
बाहर से जो मैं पाषाण सी दिखती हूँ
भीतर गर्म लावा ठंडे से सहेजती हूँ ,
अंदर का लावा सालों से धधक रहा है
उसका दर्द सीने में कसक रहा है ,
अगर लावा गिरा तो सह नही सह पायेगें
आग बुझाते बुझाते बेहाल हो जायेगें ,
बहुत सहा अब ये मन और ना सहा पायेगा
और सहा तो ये सच में फट जायेगा ,
लेकिन इसके फटने से मैं शीतल हो जाऊँगीं
फिर मैं ज्वालामुखी को सार्थक कर पाऊँगीं ।
नोट : कुछ ज्वालामुखी दुबारा भी फटते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममा सिंह देवा , 09/06/2021 )