मैं जाग चुकी हूँ
” मैं जाग चुकी हूँ ”
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हाँ मैं नारी हूँ !
सदियों से ही….
और सदियों तक भी !
अपनाया है मैंने !
सृजनशीलता को
ताकि सृजना बनकर
सतत् सृजन करूँ !!
किया भी है……
करती भी हूँ !
तभी कहलाती हूँ !
युग-सृष्टा ||
अपनाया है मैंनें !
ममता को
ताकि वात्सल्य की
वृष्टि करूँ !!
दे दूँ इतना हमेशा
कि सदा-सर्वदा
कर्मठता !
कर्तव्यपरायणता !
नैतिकता !
रचनाधर्मिता !
को राष्ट्र-निर्माण में
समर्पित कर सकूँ ||
अपनाया है मैंने !
सूक्ष्म दृष्टि को
ताकि देख सकूँ !
नित्य विकास !
परम्परा !
संस्कार !
संस्कृति !
और राष्ट्र की
एकता-अखण्डता को !
ताकि बनी रहूँ मैं !
युग-दृष्टा ||
अपनाया है मैंने !
सक्षमता को
ताकि कर सकूँ !
सक्षम और सुदृढ……
खुद को !
नर को !
और देश को !
न हो विचलित नर
न ही राष्ट्र खंडित !
तभी बनी हूँ मैं !
स्वयं-सिद्धा ||
अपनाई है मैंने !
निष्ठा और सहिष्णुता !
ताकि बना रहे
मेरे देश में…….
साम्प्रदायिक सोहार्द्र !
और बनूँ मैं !
राष्ट्र-निर्माण की
आधारशिला ||
अपनाया है मैंने !
संकल्प की स्वतंत्रता को
ताकि ले सकूँ !
स्वतंत्र निर्णय
राष्ट्र-निर्माण में !
और बनूँ मैं !
राष्ट्र-हित का
हेतु ||
अपनाया है मैंने !
मेहनत को !
ताकि उपजा सकूँ !
खेतों में अन्न !
साथ ही पालती हूँ
मवेशियों को !
ताकि विकसित हो
राष्ट्र की अर्थव्यवस्था !
और मिटाती हूँ भूख
जन-जन के पेट की
और कहलाती हूँ !
अन्नपूर्णा ||
अपनाया है मैंने !
कुशलता को !
ताकि दिखा सकूँ
अपने कौशल को
और जड़ दूँ मैं !
रत्नों की भाँति
राष्ट्र-निर्माण के मोती
और कहलाऊँ !
मैं सदा-सदा ही
कौशल्या ||
अपनाया है मैंनें !
दक्षता को !!!
ताकि हर क्षेत्र में
लहराऊँ !
विजय-पताका को
और कहलाऊँ !
दक्षिता ||
मैं बनी हूँ ……..
लक्ष्मीबाई !
हाड़ी !
और पन्ना |
ताकि रख सकूँ !
मैं मान
मर्यादा का !
कर्तव्य का !
ईमान का !
और कहलाऊँ !
मानसी ||
अपनाया है मैनें !
तत्परता को !
ताकि हर क्षेत्र में
तत्पर रहूँ
और उपस्थित भी !
ताकि नव-निर्माण हो
सतत् और उज्ज्वल |
तभी तो कहलाती हूँ !
उज्ज्वला ||
अपनाया है मैंने !
प्रेरक शक्ति को
और बनी हूँ !
सदियों से ही…..
पुरूष की प्रेरणा !
तभी तो कहलाती हूँ !
प्रेरणा ||
पहुँच चुकी हूँ मैं !
सागर-तल और
अंतरिक्ष तक !
नहीं रूकना है अब
बीच राह में मुझे !
बस ! चलते जाना है
राष्ट्र-निर्माण की ओर
तभी तो दिल खोलकर
कहती हूँ !!!!!!!
कुछ तुच्छ मानसिकता
के तलबगारों को……
कि — नहीं बनना है !!
मुझे फिर से ?
मात्र भोग्या !
अबला !
डावरिया !
देवदासी !
और विषकन्या !!!!!!!
क्यों कि मैं जाग चुकी हूँ !
राष्ट्र-निर्माण…………
और विकास के लिए ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”