मैं जब भी चाहूंगा आज़ाद हो जाऊंगा ये सच है।
मैं जब भी चाहूँगा आज़ाद हो जाउंगा ये सच है।
मगर मैं ये कभी कर ही नहीं पाउँगा ये सच है।
ज़माना आएगा समझाएगा देगा तसल्ली पर।
मैं तन्हाई में अपने घाव सहलाउंगा ये सच है।
बहुत मेले बहुत ठेले बहुत महफ़िल बहुत जलसे।
मग़र इक दिन अकेला खुद को मैं पाउँगा ये सच है।
अभी तो कारवाँ में हूँ अभी खुद कारवाँ हूँ मैं।
मग़र चुपके से इक दिन मैं निकल जाऊँगा ये सच है।
अभी तुम ठोकरों पे ठोकरें दो मुझको गिरने दो।
मैं चलना सीख लूंगा मैं सम्हल जाऊँगा ये सच है।
मैं खुद को पाक कहता हूँ मैं खुद को साफ़ कहता हूँ।
मुझे दुनिया बदल देगी बदल जाऊँगा ये सच है।
“नज़र” तारीफ़ से बचता हूँ शरमाता हूँ पर इक दिन।
मैं खुद से खुद को ही जयमाल पहनाऊंगा ये सच है।
Kumar kalhans