मैं जगाने आया हूँ
✍️ मैं जगाने आया हूँ ✍️
सोए समाज के सिंहो को जगाने आया हूँ,
ठहरे-सहमे समंदर में तूफान उठाने आया हूँ,
वैष्णव-बैरागी-स्वामी न जाने
किस-किस में हम बट गए,
इसलिए…..!
हम अपने-अपने मकसद से भटक गए,
संस्कारो की सीढ़ियों को हमने छोड़ गए,
धर्म की धाराओं में बहना बंद हो गए,
हुनरों की नदियां बहती अब बंद हो गए,
पुजारियों का देवता एक था
पर पूजने वाले सब बट गए,
हम सब टांग-खिंचाई में
और…….!
एक-दूसरे को नीचा दिखाने में रह गए,
एकता के अभाव में हम
इस देश के होते हुए शरणार्थी हो गए,
पालघर हो-सपोटरा हो
या……
कोई सा प्रदेश हो,
नहीं चैन से रह रहा पुजारी
किसी भी प्रदेश का हो,
अब भी समय है
पुजारी भाइयों सम्भल जाओ सुधर जाओ,
वक्त की धारा में बहना सिख लो
वार्ना….
यूँ ही बह जाओ,
अरे तुम न पढ़ सके-न बढ़ सके
पर…..
अपने-अपने बच्चों को तुम बढ़ाओ,
सोए समाज के सिंहो को जगाने आ आया हूँ,
ठहरे-सहमे समंदर में तूफान उठाने आया हूँ !!
✍️ चेतन दास वैष्णव ✍️
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
राजस्थान
20/03/021
स्वरचित-मौलिक मेरी रचना