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2 Nov 2017 · 1 min read

मैं छोड़ रहा था आँगन जब

मैं छोड़ रहा था आँगन जब

मैं छोड़ रहा था आँगन जब
अंदर से जागी चिंगारी
हूँ मैं कितना क़ायल इनका
जो लगती है मुझको प्यारी

है प्यार,छलकता जाता है
तुझमें देखूँ दुनिया सारी
तुम मुझमें इतना मिश्रित हो
पानी संग जैसे मिश्री सारी

मैं छोड़ के तुमको ना जाऊँ
अब प्रीत परीक्षा की बारी
ख़ुद अंदर ख़ाली लगता है
ये कहता है अब मन भारी

जैसे जैसे मैं तुझसे दूर हुआ
अंदर की अग़न ने हूक मारी
अब कैसे बीतेंगे इतने पल
कहती है मन कि चिंगारी

ऐसा क्यों होता, तब है नहीं
जब पास तेरे मैं होता हूँ
तब क्यों लगता है ऐसे की
मैं जीता नहीं दुनिया सारी

यतीश १२/४/२०१५

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 355 Views
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