मैं चुप नहीं रह सकता
आंखों को तो फेर लूं मैं
कानों को भी बंद कर लूं!
होठों को तो सी लूं अब
हाथ से क़लम भी फेंक दूं!
लेकिन आख़िर अपनी गैरत
और ज़मीर का क्या करूं?
इस तड़पते दिल का क्या करूं?
इस सिसकती रूह का क्या करूं?
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