मैं चुप थी
●●●●●मैं चुप थी●●●●●
मैं तो चुप ही थी
न जाने कैसे
कलम को भनक लगी
और चल दी मेरी
आपबीती लिखने और
कह डाले मेरे मन के
सारे राज जो दफ़न थे
अतल पटल पर
शब्दो मे लिख दी
टीस की पीड़ा जो थी मुझमे
मैं तो चुप ही थी
किस्मत का लिखा मानकर
नही रहा तू भी मेरा बन
कलम ने दर्द की पीड़ा को
सामने लाकर रख दिया
शब्द शब्द में भरा दर्द
मानो शब्द जी रहे हो यथार्थ
वही जो मैं जी रही थी
यही तो है ‘मंजु’की कलम का
बेमिशाल कमाल