मैं चिर पीड़ा का गायक हूं
प्रिये प्रणय के अनुबंधों को,
बोलो कैसे आधार मिले।
तुम स्वर्णिम आभा महलों की
मैं चिर पीड़ा का गायक हूं….
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तुम सरल व्याकरण जीवन की
मैं अर्थहीन परिभाषा हूं।
तुम धनवानों की कृपण दृष्टि,
मैं याचक की अभिलाषा हूं।
तुम हो पुष्पों की मधुर गंध,
मैं वसुधा का आलिंगन हूं।
तुम प्रथम मिलन का आह्लादन
मैं दुःख का करुणा क्रंदन हूं।
तुम शुभ्र छटा हो वासन्ती
मैं पतझड़ का अधिनायक हूं।
तुम स्वर्णिम आभा महलों की
मैं चिर पीड़ा का गायक हूं….
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तुम ज्येष्ठ मास की तीव्र धूप,
मैं श्रावण सी शीतलता हूं।
तुम चंचल धारा नदियों की,
मैं तटबंधों की स्थिरता हूं।
तुम पूर्ण चंद्र की मध्य रात्रि
मैं कृष्ण पक्ष की बेला हूं।
तुम उदित सूर्य सम तेज युक्त
मैं जलता दिया अकेला हूं।
तुम मृग शावक सी हो कोमल,
मैं दृढ़ता का परिचायक हूं।
तुम स्वर्णिम आभा महलों की
मैं चिर पीड़ा का गायक हूं….
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तुम सुंदरता की सहज मूर्ति,
मैं श्याम वर्ण का द्योतक हूं।
तुम विषयों की अनुरक्ति प्रिये
मैं मोक्ष मार्ग का पोषक हूं।
तुम अंबर सी उन्मुक्त सदा,
मैं भावों में अनुबंधित हूं।
तुम इतराती हो वैभव पर
मैं निर्धनता में वन्दित हूं।
तुम करो ईर्ष्या लोगों से
मैं प्रेम सुधा रस दायक हूं।
तुम स्वर्णिम आभा महलों की,
मैं चिर पीड़ा का गायक हूं….
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विमल शर्मा’विमल’
हरगांव, सीतापुर