मैं चलूँ कुछ तुम चलो..
मैं चलूँ कुछ तुम चलो..
पैदल ही मंज़िल फतह करेंगे,
क़दम से क़दम मिला हमसफ़र,
कारवाँ तक बारम्बार मिलेंगें ।
मंज़िल मेरी ओर तेरी…
हम मिलकर साथ चलेंगे,
हाथ मेरा कभी छोड़ न देना,
बिछुड़े तो शायद नहीं मिलेंगे ।
मैं हूँ भूखा शायद तू प्यासा…
ऐसे ही हम घर पहुंचेंगे,
मौत ही कर सकती है अलग,
तूफ़ानों में भी कश्ती लेकर निकलेंगे ।