मैं चला था अकेला
मैं चला था अकेला यहीं सोच कर
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मैं चला था अकेला यहीं सोच कर।
मदद तू करेगा यहीं सोच कर।
राह दुर्गम थी औ मै अकेला पथिक-
पार बेड़ा लगेगा यहीं सोच कर।
ये जहां मानता सर्वसामर्थी तुझे
भव बाधा हरेगा यहीं सोच कर।
हाथ तेरे बहुत करता सबकी मदद-
हाथ सर पे धरेगा यहीं सोच कर।
तू परमात्मा मैं हूँ अदना मनुज-
कर्म मेरा फलेगा यहीं सोच कर।
आजअपने ही अपनों को छलने लगे-
तू मुझे न छलेगा यही सोच कर।
है सुभागा सचिन मदद तुझसे मिला
सुखी जीवन रहेगा यहीं सोच कर।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार