मैं चंदा बनकर आऊंगा
छत पर अपने, हमेशा दिखती हो तुम
मुझे देख कर फिर, क्यूं छिपती हो तुम
कल देखा तुम्हें, चंदा से बतियाते हुए
उसे भी उजियारी सी लगती हो तुम
मेरा क्या है, मैं एक दिन चला जाऊंगा
तुम्हें लिखकर फिर तुम्हें ही गाऊंगा
छत पर जब रहोगी डबडबाई आंखें लिए
देखना मैं ही फिर चंदा बनकर आऊंगा
सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार