मैं घर हूँ
मैं हूँ
वो बस स्टॉप
जिसे बारिश के बाद
तुम छोड़ जाते हो
मैं हूँ
वो समंदर का किनारा
जिसे सूरज ढलने के बाद
तुम छोड़ जाते हो
मैं हूँ
वो दवा की शीशी
जिसे दर्द ख़त्म हो जाने पर
तुम छोड़ जाते हो
मैं हूँ
वो सागर का पानी
जिसे किनारे के पार
तुम छोड़ जाते हो
मैं घर हूँ
तुम हो एक बंजारा
और हमेशा की तरह मुझे
तुम छोड़ जाते हो
–प्रतीक