मैं घड़ा हूं
मैं घड़ा हूं
लोगों की प्यास बुझाता हूं
मिट्टी औ ‘चाक से बना
सोंधी महक से सना
मैं घड़ा हूं
बदले में कुछ नहीं चाहता हूं
कुम्हार के हस्त की
श्रम और साध्य की
अद्भुत छवि हूं
मैं घड़ा हूं
कुंभ सा जीवन गुजारता हूं
धरती का अंश
मटकी का आकार
ताप सी चमक
मैं घड़ा हूं
मिट्टी को आकार देता हूं
प्यास लोगों की बुझाता
शीतल जल उनको पिलाता
गुणों की खान हूं
मैं घड़ा हूं
लोगों के काम आता हूं ।
कभी गोरी की बाहों के
छलकते जल में
पनघट से घर आता हूं
मैं घड़ा हूं
चल पगडंडियों पर इतराता हूं
कभी कलश बन सर पर चढ़ता
कभी शव की अंतिम परिक्रमा करता
मिट्टी में मिलता हूं
मैं घड़ा हूं
जीवन और मृत्यु के चक्र में पड़ा हूं।
__चारुमित्रा